मेलबर्न । पिछले पांच सालों में भारतीय क्रिकेट ने बेहतर खिलाड़ियों से ज्यादा कप्तानों को जन्म दिया है, जिससे टीम में नेतृत्व को लेकर असमंजस बढ़ता जा रहा है। वर्तमान में भारतीय क्रिकेट टीम को एक सेनापति के बजाय कई सेनापति अपनी-अपनी दिशा में सेना को चलाने की कोशिश कर रहे हैं।
 इस संकट का असर अब आगामी चैंपियंस ट्रॉफी 2025 में देखने को मिल सकता है, जहां भारतीय टीम संभावित रूप से सात कप्तानों के साथ मैदान में उतरेगी। टीम इंडिया के नियमित कप्तान रोहित शर्मा के साथ विराट कोहली, हार्दिक पांड्या, जसप्रीत बुमराह, सूर्यकुमार यादव, ऋषभ पंत और संभावित तौर पर केएल राहुल जैसे खिलाड़ी भी दुबई जाने वाली टीम में शामिल होंगे। ये सभी खिलाड़ी किसी न किसी समय भारतीय टीम की कप्तानी कर चुके हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि जब एक टीम में इतने कप्तान हों, तो क्या सभी एक पेज पर आ पाएंगे? भारतीय क्रिकेट में कप्तानी को लेकर विवाद कोई नई बात नहीं है। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर टीम में चार कप्तान थे, जिनमें से दो ने अलग-अलग मौकों पर टीम का नेतृत्व किया। खबरें यहां तक थीं कि एक और खिलाड़ी कप्तानी की महत्वाकांक्षा रखता था। अब चैंपियंस ट्रॉफी जैसे बड़े टूर्नामेंट में सात कप्तानों की मौजूदगी टीम के लिए रणनीतिक और सामंजस्य का बड़ा चैलेंज बन सकती है। 2013 में महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में भारतीय टीम ने चैंपियंस ट्रॉफी जीती थी। उस वक्त टीम में सिर्फ एक ही लीडर था, जिसने खिलाड़ियों को एक दिशा में संगठित रखा। इसके बाद से खिलाड़ियों की फिटनेस और क्रिकेट कैलेंडर की व्यस्तता के कारण कप्तानों में बदलाव बढ़ा, जिससे टीम में नेतृत्व की स्थिरता कम हो गई।
रोहित शर्मा, जो 2013 की चैंपियंस ट्रॉफी जीत का हिस्सा थे, टीम को एकजुट रखने की क्षमता रखते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या वे बाकी कप्तानों के साथ तालमेल बिठाकर इस चुनौती को पार कर पाएंगे? जितने सिर, उतने दिमाग वाली स्थिति में खिलाड़ियों का नेतृत्व करना रोहित के लिए बड़ी परीक्षा साबित हो सकता है। भारतीय क्रिकेट टीम के फैंस को 2025 की शुरुआत में खराब प्रदर्शन के बाद अब चैंपियंस ट्रॉफी से वापसी की उम्मीद है। लेकिन कप्तानों की इस फौज के बीच यदि हर कोई अपनी-अपनी शैली में नेतृत्व करने की कोशिश करेगा, तो टीम के लिए यह टूर्नामेंट एक और खाली हाथ वापसी का कारण बन सकता है।